Monday, March 1, 2010
उलझी उलझी सी हूँ,
सुलझा दो.
एक अरसा बीत गया,
अब तो बता दो.
ज़माने बीत गए,
लगा की सदियाँ गुज़र गयी,
और इतना उलझ गयी
जैसे बिल्ली के साथ लगा उन का गोला
अब बस मैं हू
और मेरे ताने बाने
और एक मीठा सा इंतज़ार
समय को रोक क रखा है इस पार
अनजाना ही सही पर कुछ बहुत ख़ास है
बहुत करीब हो इसका एहसास है
जब दीदार होगा तो सालों का अनजानापन
बस कुछ पलों का मेहमान होगा
कभी साथ ज़रूरी होता है
और कभी इंतज़ार
कभी जान कर प्यार बढ़ता है
और कभी अनजाने ही दम निकलता है
देर तो हो गयी है
पर कौन कहता है इंतज़ार हमें नागवार है
तुम आना, दम निकल जाए बस इससे पहले
अपने वजूद का एहसास कराने
यही कही आस पास. अपने ताने बानो में उलझे से
कुछ रूठे से, कुछ मने से
तुम हो ये बताने, सालो के इंतज़ार को मिटाने
सदियों के संगम पे तुम्हारी राह तकूंगी में.
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1 comment:
sahi :) my favourite is
और इतना उलझ गयी
जैसे बिल्ली के साथ लगा उन का गोला
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